लकीरें

आज आईने में मैंने अपना चेहरा देखा; तो नज़र आई कुछ लकीरें……
कुछ लकीरों में चमकने लगी थी सफेदी, कुछ में हो रहा था थोड़ा सा दर्द,
कुछ लकीरें खिंच गईं थीं दिलो–जान पर, कुछ आ गई थीं रिश्तों के बीच,
कुछ मिट रही थी, कुछ नई बन रही थी,
कुछ थी ऐसी, जो किसी को नज़र नहीं आ रही थी,
और कुछ ऐसी, जो चाह के भी, छुप नहीं पा रही थी.
आज आईने में मैंने अपना चेहरा देखा; तो नज़र आयें कुछ लकीरें…..
समझ नहीं पा रहे थे की; हम इनको कैसे करें कम, कशमकश में और डूबते जा रहे थे हम,
फ़िर एक दोस्त ने समझाया की, ये लकीरें ही ज़िन्दगी हैं,
ये लकीरें हम में हैं, और इन लकीरों में हैं हम.
समय के साथ सीखा हमने; लकीरों पे करना ऐतबार,
लकीरों की ख़ूबसूरती जो समझ ली हमने, जिंदगी का मजा ही हुआ कुछ और.
अब लकीरें कितनी भी हो टेढ़ी; चेहरे पे नहीं दिखती,
जो दिखती है कभी चेहरे पर, वो आती है बन के मुस्कुराहट,
और कहती हैं लकीरों से, कि हमसे हो तुम, और तुमसे हैं हम,
करते हैं मिलके मजा, क्यूंकि यही है जिंदगी की रजा.
आज जब फिर एक बार आईने में मैंने अपना चेहरा देखा; तो नज़र ना आई कोई लकीरें…..
Be independent and free from within!
Happy Independence Day!
You must be logged in to post a comment.